बिस्तर पर हूँ बैठा हुआ,
हाथ में है एक किताब,
पढ़ तो रहा हूँ अक्षर कुछ,
पर मन में है एक ख्वाब.
लैपटॉप है टेबल पर,
सिर्फ दो हाथ की दूरी पर,
फ़ोन भी है पास में,
पर कोई बहाना नहीं है दिमाग में.
विज्ञानं ने साधन तो दिए हैं अनेक,
पर चूंक हो गयी है एक.
कुछ ऐसा बना, विज्ञानिक
की इस बहाने का न रहे अस्तित्व
अपने आप ही मेरे मन का प्रतिबिम्ब,
उसकी नज़र के सामने आ चले.
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